क्या आज मेरे वजूद का पैमाना बताओगे,
जो है सृष्टीकार की भी मां,
उसके लिए शक्ति पूजा,
और मेरे लिए दहेज़ की बेदी सजाओगे,
जिसे कहते हो तुम मां दुर्गा मां काली,
मैं भी उसका अंश हूँ,
तुम कब समझ पाओगे,
तुम्हे नौ महीने अपना खून पिलाया,
कभी बेटी कभी बहन बनकर,
तुम्हारे जख्मों को सहलाया,
यकीं नहीं था कि तुम,
बस औरत का फर्ज कहकर,
यूं ही भूल जाओगे,
जानवर गर समझो मुझे,
तो वो मैं थी,
जिसके दूध के भरोसे,
तुम अपनी औलादों को छोड़ गए,
और फिर छोड़ जाओगे,
मैं तो बेटी हूँ तुम्हारी,
फिर क्यों मेरे हिस्से में,
तुम सिर्फ नफरत लुटाओगे,
फिर भी मुझे कोई गिला नहीं,
पर डर है कि,
इक दिन इस कायनात में मेरे बिना,
तुम अकेले रह जाओगे.
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2 comments:
यकीं नहीं था कि तुम,
बस औरत का फर्ज कहकर,
यूं ही भूल जाओगे,
bahut achchi kavita hai
marm aurat ka bahut samvedansheel shabdon mein likha hai .........
चंदन जी ,
बहुत सुंदर कविता ,
अंतर्मन से निकले भावों की बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,
बहुत बहुत बधाई
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