ayodhya

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Sunday, March 14, 2010

मां

याद आता है मां का वो रोना,
वो सुबकना,
जब मेरा संघर्ष ढूंढता था,
स्थायित्व का एक अदद कोना,
उसके आंसुओं का,
मजबूरी के यौगिकों से घुला होना,
जो पिघला सकता था,
परमेश्वर का भी सीना,
उसे रंज था,
कि वो न लायी थी,
सामने वाले प्रोफ़ेसर साहब ने,
जो दिया था,
अपने बेटे को खिलौना,
मेरे अनुतीर्णता को मानती थी वो,
अपनी बेचार गरीबी का होना,
मैं आज जो भी हूँ,
उसके संस्कारों की बदौलत हूँ,
मां तू बहुत अमीर थी,
तब भी आज भी,
मुझे नहीं भूलता तेरा वो रोना,
इसलिए मां तुझे शुक्रिया नहीं,
कह पता मैं,
काश तेरे जैसा मैं भी होता,
और जान लेता,
तेरा राज-ए-हँसना राज-ए-रोना,
मां तू तो बिना कहे जान लेती है,
क्यूँ है मेरा हँसना क्यूँ है मेरा रोना,
मां तू अब तो नहीं रोती,
बता दे मुझे,
मुझमे है अब भी बचपना

8 comments:

अंकुर कुमार 'अश्क' said...

बहुत खूब ........

kshama said...

याद आता है मां का वो रोना,
वो सुबकना,
जब मेरा संघर्ष ढूंढता था,
स्थायित्व का एक अदद कोना,
Behad sundar!

shama said...

मैं आज जो भी हूँ,
उसके संस्कारों की बदौलत हूँ,
मां तू बहुत अमीर थी,
तब भी आज भी,
Seedhe saral alfaaz!

इस्मत ज़ैदी said...

चंदन जी,
मां के मनोभावों को समझ लेना ,आप का अपनी मां से जुड़ाव प्रदर्शित करता है

याद आता है मां का वो रोना,
वो सुबकना,
जब मेरा संघर्ष ढूंढता था,
स्थायित्व का एक अदद कोना,
उसके आंसुओं का,
मजबूरी के यौगिकों से घुला होना,
जो पिघला सकता था,
परमेश्वर का भी सीना,

बहुत उम्दा और भावपूर्ण पंक्तियां

ओम सोनी said...

मैं आज जो भी हूँ,
उसके संस्कारों की बदौलत हूँ,
मां तू बहुत अमीर थी,

बढ़िया कविता।

अजय कुमार said...

हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

Udan Tashtari said...

बेहद भावपूर्ण...सुन्दर अभिव्यक्ति!

संगीता पुरी said...

इस नए चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!