याद आते हैं जब वो मंजर,
दिल ये फूट फूट के रोता है,
इस रोते दिल की बस यही तमन्ना है,
बता सकूँ तुझे कि ये अब मेरा सोचना है,
तू जिस गली से गुजरती थी,
वो भी अब महबूबा लगती है,
तेरे कालेज की दीवार,
मूरत वफ़ा की दिखती है,
कजरारी ऑंखें,
अब प्रेम के समंदर सी इठलाती हैं,
फिर ठिठक जाता हूँ मैं,
जब तेरे घर की बंद खिड़कियाँ,
हरजाई नाम मेरा दोहराती हैं,
कह दे इनसे,
एक बार दीदार तेरा करा दे,
ऐ काश उसे फिर मुझसे प्यार करा दे,
उसे फिर मुझसे प्यार करा दे.
Friday, March 2, 2012
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