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Wednesday, May 28, 2008

आधुनिक पत्रकारिता- पीत या छदम पत्रकारिता

आज मैंने हिन्दुस्तान अखबार में रवीश कुमार का ब्लाग से सम्बन्धित लेख पढा। जिसमे उन्होने मनीषा पाण्डेय की बेदखली की डायरी का उल्लेख किया है। मनीषा की डायरी पढ़ने के बाद मुझे लगा कि वाकई में ब्लाग अपनी बातो को कहने का सशक्त माध्यम हो सकता है. वैसे मैं मनीषा जैसी बेहतरीन लेखन शैली और उनके जैसी इमानदारी शायद अपने लेखन में न विकसित कर पाऊं, मगर मैं कोशिश करूँगा कि मैं भी अपनी बातो को ठीक से समझा सकूं. बहरहाल मैं इस शीर्षक पर आता हूँ। मैं जब मॉस काम की पढाई कर रहा था तभी फर्स्ट इयर में ही पत्रकारिता कि दो अजीब विधाओ से दूर रहना सिखाया गया था. जिसे पीत पत्रकारिता और छदम पत्रकारिता कहते है. हमारे गुरुवर राष्ट्रपति पुरुस्कार विजेता श्री यदुनाथ सिंह मुरारी ने हमें इन् विधाओ के बारे में बताते हुए इनसे दूर रहने कि नसीहत दी थी. तब मैंने सोचा भी नहीं था कि मुझे भी जाने अनजाने या फिर नौकरी की मजबूरी के बहाने इसी विधा का उपयोग खूबसूरती से करना होगा. रोजी रोटी पाने और वेरी प्रोफेशनल कहला कर अपनी तारीफ सुनने के लिए मुझे भी लोगो के आंसू का तमाशा बनाना होगा. बात अगर यही तक हो तब तो ठीक थी। मगर हमारे धंधे में एक टी.आर.पी. उसूल है. जिसको ठीक ठीक शब्दों में कहा जाय तो जब तक किसी के टीअर की रेटिंग पॉइंट होती है तब तक हमारा इलेक्ट्रोनिक मीडिया उसके साथ होता है रेटिंग पॉइंट गिरने के साथ हम उसका साथ भी छोड़ दिया करते है. फिर चाहे उसकी बाईट लेने के लिए नेताओ की तरह कितने भी वादे किये गए हों कि आपको इन्साफ मिलेगा. मैं एक वाकया बताता हूँ. फैजाबाद में ही एक औरत ने अपने पति के नाजायज संबंधो से तंग आकर उसकी हत्या कर दी और जब तक वह खुद को भी मौत के घाट उतार देती लोगो ने उससे धर दबोचा. मैं उन् दिनों एक बहुत पुराने विशेषतः अपराध कि खबर दिखाने वाले प्रोग्राम के लिए खबरे बनाता था. मुझ से कहा गया की लो प्रोफाइल खबर है ड्रॉप कर दीजिये. अब सुनिए मेरे एक मित्र को जो जवाब मिला. उत्तर प्रदेश के माने जाने एक रिपोर्टर जो उसके बॉस थे उन्होने उससे पुछा ये बताओ तुम्हे अगर उस औरत से सम्बन्ध बनाना हों तो बनाओगे? उसका जवाब था नहीं. बॉस ने कहा तब ड्रॉप कर दो. यानी वो औरत इतनी सुन्दर नहीं है की उसकी तस्वीर टी.वी. पर चलने से उसके टीअर को कोई रेटिंग पॉइंट हासिल हों सके. जब खली के लिए यज्ञ होता है तो उससे खबरों की हेडलाईन में परोसा जाता है। इससे जानने वाला रिपोर्टर अमूमन खुद ही यज्ञ कराता है. किसी ज्वालंतशील मुद्दे से जुडे लोगो के पुतले भी खुद ही फुकवाने पड़ते है. कभी कभी पुतला जब आम बात हो जाती है तो हरभजन जैसे लोगो को हीरो बनाते हुए सायमंड जैसे खलनायको की तो शमशान यात्रा ही निकलवानी पड़ती है. पति पत्नी का झगडा जिसे कभी कभी पुलिस सुलझाने की कोशिश करती है उसमे एंट्री मारकर किसी तरह पत्नी से पति को थप्पड़ मरवाकर लाइव फुटेज भी चाहिए होती है. ऐश-अभिषेक की शादी में शनि की महादशा का यज्ञ बिग बी चाहे जितना करवा ले बिना रिपोर्टर द्वारा मैनेज यज्ञ के शादी पर तो संकट बरक़रार रहता ही है.
मेरा यकीन मानिये ये तो सिर्फ बानगी भर है. अगर आप में अपनी भावनाओ को मार सकने की ताक़त है पीत पत्रकारिता आप कर सकते है आपमें साधारण घटना को छदम रूप देकर असाधारण घटना बनाने की कला है तो इलेक्ट्रोनिक मीडिया में आपका स्वागत है. और यदि आप पत्रकारिता को जूनून मानते है समाज के लिए कुछ करना चाहते है पत्रकार बनकर तो माफ़ कीजियेगा "बड़ी कठिन है डगर पनघट की". मैं आगे भी इसके बारे में लिखता रहूँगा. और ये सब लिख पाने के बाद मुझे यकीन है कि मैं आधुनिक पत्रकारिता की इस बेहूदा विधाओ से बाहर आ रहा हू. जल्द ही अपने अंतर्द्वंद से मुक्ति पा सकूँगा.