याद आते हैं जब वो मंजर,
दिल ये फूट फूट के रोता है,
इस रोते दिल की बस यही तमन्ना है,
बता सकूँ तुझे कि ये अब मेरा सोचना है,
तू जिस गली से गुजरती थी,
वो भी अब महबूबा लगती है,
तेरे कालेज की दीवार,
मूरत वफ़ा की दिखती है,
कजरारी ऑंखें,
अब प्रेम के समंदर सी इठलाती हैं,
फिर ठिठक जाता हूँ मैं,
जब तेरे घर की बंद खिड़कियाँ,
हरजाई नाम मेरा दोहराती हैं,
कह दे इनसे,
एक बार दीदार तेरा करा दे,
ऐ काश उसे फिर मुझसे प्यार करा दे,
उसे फिर मुझसे प्यार करा दे.
Friday, March 2, 2012
Saturday, February 18, 2012
स्ट्रिंगर त्राहि माम कर रहा, कुछ तो सोचिये
स्ट्रिंगर त्राहि माम कर रहा, कुछ तो सोचिये,
वो मजबूर अपने ईमान का कत्ल कर रहा,
कुछ तो सोचिये,
आपकी पूँजी में शून्य पर शून्य बढ़ रहे,
और वो बदनसीब शून्य में जी रहा,
कुछ तो सोचिये,
क्या खता थी क्यूँ उसे ना-काबिल बना दिया,
कमबख्त परिवार का ही खून पी रहा,
कुछ तो सोचिये,
हाँ खता तो की उसने- हाँ खता तो की उसने,
इस कदर समर्पण किया,
कुछ और सोच सका न वो,
कैमरे को ही जीवन दिया,
संघर्ष की इस बेरहम दुनिया में,
फिर भी कुछ तो सोचिये,
टैम की बरछियाँ न थीं कम,
(जहाँ पीपल मीटर ठीक-ठाक मात्रा में होते हैं वहीँ की ख़बरें लेने का रिवाज है)
एजेंसियों के तलवार को भी लटका दिया,
(कई बड़े चैनल अब स्ट्रिंगर्स के बजाय ज्यादातर सामान्य ख़बरें एजेंसियों से लेने लगे हैं)
टैम की बरछियाँ न थीं कम,
एजेंसियों के तलवार को भी लटका दिया,
अरे भूखा वो अब दम तोड़ रहा,
टुकड़ा एक रोटी का उसे भी तो दीजिये,
कुछ कर न सकें, फिर भी आप,
कुछ तो सोचिये.
वो मजबूर अपने ईमान का कत्ल कर रहा,
कुछ तो सोचिये,
आपकी पूँजी में शून्य पर शून्य बढ़ रहे,
और वो बदनसीब शून्य में जी रहा,
कुछ तो सोचिये,
क्या खता थी क्यूँ उसे ना-काबिल बना दिया,
कमबख्त परिवार का ही खून पी रहा,
कुछ तो सोचिये,
हाँ खता तो की उसने- हाँ खता तो की उसने,
इस कदर समर्पण किया,
कुछ और सोच सका न वो,
कैमरे को ही जीवन दिया,
संघर्ष की इस बेरहम दुनिया में,
फिर भी कुछ तो सोचिये,
टैम की बरछियाँ न थीं कम,
(जहाँ पीपल मीटर ठीक-ठाक मात्रा में होते हैं वहीँ की ख़बरें लेने का रिवाज है)
एजेंसियों के तलवार को भी लटका दिया,
(कई बड़े चैनल अब स्ट्रिंगर्स के बजाय ज्यादातर सामान्य ख़बरें एजेंसियों से लेने लगे हैं)
टैम की बरछियाँ न थीं कम,
एजेंसियों के तलवार को भी लटका दिया,
अरे भूखा वो अब दम तोड़ रहा,
टुकड़ा एक रोटी का उसे भी तो दीजिये,
कुछ कर न सकें, फिर भी आप,
कुछ तो सोचिये.
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