ayodhya

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Sunday, March 14, 2010

ख्वाबों की मंजिल

कुछ अजीब सी चाहत है मेरी,
जो पतझड़ देखे हैं,
उन पत्तियों की शपथ है मेरी,
दिल भी यही चाहता है,
और यही है मेरे इबादत की ख्वाहिश,
मेरे उम्र से हो छोटी,
रास्तों की पैमाइश,
हाँ मेरे पास वक़्त नहीं,
कि मैं तेरे कालचक्र के साथ चलूँ,
मुझे डर है कि मेरी धडकनें,
न यूं ही सफ़र कर लें पूरी,
ये जुल्म न कर मेरे साथ ऐ खुदा,
कि नचा दे मुझको कह के,
कि ये है मौत की धुरी,
बस ख्याल रखना कि,
वक़्त नहीं दिया है तूने,
कहीं रास्ते पर ही न रह जाय,
ये ख्वाबों की मंजिल अधूरी.

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