स्ट्रिंगर त्राहि माम कर रहा, कुछ तो सोचिये,
वो मजबूर अपने ईमान का कत्ल कर रहा,
कुछ तो सोचिये,
आपकी पूँजी में शून्य पर शून्य बढ़ रहे,
और वो बदनसीब शून्य में जी रहा,
कुछ तो सोचिये,
क्या खता थी क्यूँ उसे ना-काबिल बना दिया,
कमबख्त परिवार का ही खून पी रहा,
कुछ तो सोचिये,
हाँ खता तो की उसने- हाँ खता तो की उसने,
इस कदर समर्पण किया,
कुछ और सोच सका न वो,
कैमरे को ही जीवन दिया,
संघर्ष की इस बेरहम दुनिया में,
फिर भी कुछ तो सोचिये,
टैम की बरछियाँ न थीं कम,
(जहाँ पीपल मीटर ठीक-ठाक मात्रा में होते हैं वहीँ की ख़बरें लेने का रिवाज है)
एजेंसियों के तलवार को भी लटका दिया,
(कई बड़े चैनल अब स्ट्रिंगर्स के बजाय ज्यादातर सामान्य ख़बरें एजेंसियों से लेने लगे हैं)
टैम की बरछियाँ न थीं कम,
एजेंसियों के तलवार को भी लटका दिया,
अरे भूखा वो अब दम तोड़ रहा,
टुकड़ा एक रोटी का उसे भी तो दीजिये,
कुछ कर न सकें, फिर भी आप,
कुछ तो सोचिये.
Saturday, February 18, 2012
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